Monday, 12 March 2018

गजल-100 ऑखों में उसकी सपने देखता हूॅ

ख्वाबों में उसका नजारा देखता हूं।
मैं तो अक्सर टूटा तारा देखता हूं।।

रहता रहे चाहे जहां कहीं भी वो मगर।
हर घड़ी उसे अपना सहारा देखता हूं।।

भला क्यों नजूमी*से जनमपत्री विचरवाऊं।*ज्योतिषी
उसमें अपना मुकद्दर जब सारा देखता हूं।।

जमाने की मुश्किलें हमारे लिए तो कुछ भी नहीं।
जाना जब किसी औरत को बेचारा देखता हूं।।

सेंसेक्स बुलंदियों को छूता है जब भी। किसानों का ददॆ बड़ा खारा देखता हूं।।

बड़े एहतराम*उसने अपनी चौखट बुला लिया। *आदर
तौफीक* मैं उसका होकर प्यारा देखता हूं।।
*ईश्वर अनुकम्पा

सो नहीं पा रहा अब रात भर"उस्ताद"कसम से।
सांपों का जब"गठबंधन"हत्यारा देखता हूं।।

@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment