Thursday, 5 March 2015

325 - को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली {हास्य-व्यंग}







को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।  
करंट है मारे ठंडा पानी ,खेले डरूं होली गीली।।
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली। 
रंग गुलाल कहाँ से लाऊँ ,जेब है मेरी ढीली।।
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।
गुझिया खिलाऊँ ,काहू से सबको ,खोया मिले है नकली।। 
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।  
गले लगाऊं राधा कैसे ,स्वाइन फ्लू हर गली।।
को खेले ऐसी होली ,जा में हवा चले बर्फीली।  
यदि खेलन चाहो देवर-भौजी,जीजा-साली 
जोरू मैं हाथ फेसबुक,ऐप खेलो बस होली।।

Wednesday, 4 March 2015

324 - भर रंग पिचकारी क्यों मार रहे हो श्याम



भर रंग पिचकारी क्यों मार रहे हो श्याम 
मैं तो रंग में रंग चुकी तेरे ही एक श्याम। 


अब सब छोड़ लोक-लाज,आयी तेरे पास 
बाहों में भर ले मुझे, एक यही अब आस। 


जहाँ देखती खड़ा वहीँ तू,रोके मेरी राह 
पकडूँ तो छल कर,बेगि छुड़ावत बांह।


दिनभर भटक-भटक कर थक जाते हैं पाँव 
जाने कब आओगे बसने मेरे दिल की ठाँव। 


"नलिन" नयन व्याकुल हैं कबसे,ओ निष्ठुर दिलदार 
देर करो न पल भर अब तो, सुन लो करून  पुकार। 



Tuesday, 3 March 2015

323 - गिरगिट भी हैरत में क्या चीज़ हैं आप।

रंग बदलते हैं जिस तरह जिंदगी में आप
गिरगिट भी हैरत में क्या चीज़ हैं आप।
एक पल भी आगे का जब नहीं ठिकाना आज
वादे जन्नत के मगर खूब दिखा रहे हैं आप।
दाने-दाने को मोहताज बना रहे जो आज
वही मसीहा खुद को  बता रहे हैं आप।
कागज़ के जो फूल लिए गाते राग बहार
रंगे सियार से वो ही हू आ करते आप।
झूठ-मक्कारी फ़िज़ा में घुली-मिली है आज
"उस्ताद" वही जो आईना दिखा सके है आप। 

Monday, 2 March 2015

ग़ज़ल-77 फलों से लद गया

फलों से लद गया जो दरख़्त आम का।
सहा तो होगा इसने वक्त घाम का।।

यूँ ही नहीं सबके दिलों में बस रहा होगा।
नब्ज़ पर हाथ होगा उसके जरूर राम का।।

कुछ है बात जो मिटती नहीं हस्ती हमारी।
दौड़ता रहा है लहू अमन के पैगाम का।।

वो बेबस,लाचार जी रहा है तन्हा अपनों में।
अरसे से मर गया है यहां चलन दुआ-सलाम का।।

बाँध पाँव अंगारे और ले दुआ के फूल चले। 
है वारिस असल वो अपने "उस्ताद" के कलाम का। 

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 1 March 2015

ग़ज़ल-89

मुझे हर घड़ी क्यों ख्याल तेरा बना रहता है।
जबकि मुझसे तू अक्सर नाराजगी ही रखता है।। 

कारवां वक्त का कब ठहर जाए किसी के लिए।
दिल में डर तो अब यही सदा बना रहता है।।

चन्द सिक्के हलक में डाल कर कोई भी।
काम मुश्किल अब आसान बना सकता है।।

दूर-पास का फासला अब कहाँ रहा कोई।
हर वक्त,सदा कोई ऑनलाइन दिखता है।।

"उस्ताद" हुनर को तुम्हारे पूछता कौन है।
अब तो गूगल ही सच का निज़ाम-ए-देवता है।। 

@नलिन #उस्ताद