Thursday, 1 January 2015

291 - गूंगे की वाणी












अव्यक्त को व्यक्त करने की बात जब हो गयी
निर्गुन को सगुन बनाने की बात तब हो गयी।

रूप,गुन,नाम आकार,कुछ भी तो नहीं था सामने
भक्ति-भाव की साधना से,उससे मुलाकात हो गयी।

चितवन जो उसकी देख सका,एक छन  ही सही
आँख चौंधिया कर मेरी,श्री चरन में नत हो गयी।

अलोकिक दिव्य राशि का चर्चा कहो हम कैसे करें
भाव-अभिव्यक्ति सब मेरी गूंगे की वाणी हो गयी। 

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