Tuesday 27 January 2015

303 - ऋतुराज वसंत का स्वागत





लीजिये प्रकृति फिर से एक बार अपने रूप-श्रृंगार को और भी अधिक नख-शिख सवारने की प्रक्रिया में जुट गयी हैं। मौका भी है और दस्तूर भी,प्रकृति के प्रिय ऋतुराज-वसंत का आगमन जो हो रहा है। वायु में मादकता,उल्लास,उत्साह की सरगम बहनी शुरू हो गयी है। पूरा वातावरण  खुशनुमा है। सौंधी-सौंधी महक है,हरी-भरी घास का कालीन बिछ गया है। कोयल कूक रही है। आम के वृक्षों में बौर आने लगे हैं और कलियां  इठलाते हुए फूलों का आकार लेने लगी हैं। भौरे गुंजार करते इंद्रधनुषी तितलियों के साथ विचर रहे हैं। एक अलग समां है अलग नशा है और इसी का नाम है-वसंत। सबका प्रिय,मनभावन नवल वसंत।

वसंत का रंग पीला है। दरअसल खेतों में खिली सरसों ने पीली परिधान की चुनरी से अपने  को सजा कर अपने नयनाभिराम आकर्षक रूप से हम सबको अपने रंग में रंग लिया है। ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो पीले रंग का प्रतिनिधित्व बृहस्पति करते हैं और वो ज्ञान के द्योतक ग्रह हैं ,देवताओं के गुरु हैं। यही कारण है की बृहस्पति की प्रधानता वाले जातक ज्ञानवान पंडित माने जाते हैं। वहीँ वसंत-पंचमी का दिन माँ सरस्वती का जन्मदिन भी माना जाता है। ब्रह्मा ने अपने मानस-संकल्प से उन्हें इस दिन अवतरित जो किया था। अतः इस दिन माँ सरस्वती का विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया जाता है। देवी सरस्वती जो अपने एक हाथ में माला,एक में वीणा,एक में पुस्तक व एक हाथ में कमल लिए हैं हंस पर विराजमान दर्शायी जाती हैं। माला-सात्विक कर्म, वीणा-स्वर,संगीत, पुस्तक- ज्ञान-विज्ञान और कमल निर्लिप्तता व निर्मलता के प्रतीक हैं तो वहीँ हंस नीर-छीर विवेक का प्रतीक है। साहित्य,संगीत,कला की देवी के रूप में आप प्रातः स्मरणीय /वंदनीय हैं। नौनिहालों को इसी कारण  से इस दिन अक्षर ज्ञान का श्री गणेश  कराया जाता है। शिष्य अपने गुरु के साथ वीणापाणी का आशीर्वाद लेते हैं। पीले मोदकों,पुओं,केसर डली खीर  और हलुवे का भोग लगाया जाता है और पश्चात उसे प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।वाणी को रससिक्त करने के लिए गायक,कला को निखारने हेतु वादक माँ सरस्वती का गुणगान करते हैं तो कवि,साहित्यकार उनकी वंदना लिखकर अपना सम्मान व कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
सामन्यतः वसंत पंचमी का दिन "अबूझ"माना जाता है यानी यह दिन ऐसा पवित्र है की इसके लिए किसी मुहूर्त की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। लोग इस दिन यज्ञोपवीत,गृह-प्रवेश,विवाह आदि सभी शुभ कर्म बेखटके करते हैं। समय के साथ निरंतर सुरसा सी बढ़ती महंगाई को देखते हुए एक अच्छा बदलाव यह भी आया है कि लोग सामूहिक विवाह,यज्ञोपवीत करने लगे हैं और इस हेतु वसंत-पंचमी का दिन सहज ही चुन लिया जाता है।
भारतीय पंचांग/कैलेंडर के अनुसार माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है।
इसे श्री पंचमी भी कहते हैं। जैसे लक्ष्मी पूजन दीपावली में,दुर्गा पूजन दशहरे में उसी तरह पूरे उत्साह से वसंत-पंचमी को माँ सरस्वती का पूजन होता है। सरस्वती हमारी एक प्राचीन नदी का नाम भी है जिसे इलाहबाद के संगम पर गंगा,यमुना के साथ किलोल करते हुए सतत प्रवाहमान माना जाता है।अतः  संगम पर इस दिन स्नान का भी गहरा महत्व है। यूँ भी हमारी संस्कृति "कण-कण में भगवान"  के दर्शन को स्वीकार करती -नदी,पर्वतों,वृक्षों आदि में देवत्व का दर्शन करती है। वैसे रोचक तथ्य यह भी है की हमारे वांग्मय में जो त्रिवेणी अर्थात गंगा,यमुना,सरस्वती की जो चर्चा होती है उसमें गंगा-भक्ति की,यमुना कर्म की और सरस्वती ज्ञान की धारा को इंगित करती है।वैसे भी ज्ञान तो  सदा प्रवहमान रहता  है तभी तो उसकी सुचिता,दिव्यता और शुध्दता बनी रहती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि यह  मौसम ठण्ड और सर्दी के चलते भारी-भरकम स्वेटर,जैकेट,दस्ताने,मफलर के भार से हमें मुक्ति ही नहीं दिलाता है अपितु खुली हवा में बेरोकटोक मौजमस्ती करने का भी अवसर सुलभ करा देता है। मौसम सुहाना तो होता ही है,गर्मी का दबाव भी हम पर नहीं रहता है। शीतल मंद,सुगन्धित बयार बहती  है। तराना गाने को सभी का मन झूम उठता है। तो फिर देर क्या है?आइये हम भी गुनगुनाएं ,बसंती हो चले इस मौसम का आनंद उठाएं और ऋतुराज वसंत का पूरे दिल से स्वागत करें।



          

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