Friday, 11 November 2011

अमित -आभ

हरिवंश तेज ,अमित -आभ,जयाभिषेक देदीप्य    भाल
युग पुरुष,अभिनय सम्राट,कला जगत,अनुपम वरदान
कीर्ति गाथा,अकथनीय विशाल,शांत-मृदुल, व्यक्तित्व विराट
नमन मै   करूँ  किस मुख से आपका ,शब्द सीमित हुए  आज

Tuesday, 11 October 2011

गजल-79 (जगजीत)एक मिसाल बन रह गयी

गजल की  शहनाई खामोश हो रह गयी।
दुनिया-ए-गजल आज बदहाल हो ढह गयी।।
 
सुरों के मखमली सैलाब की रुक गयी राह ।
गमे दिल को बहलाने की बात तो बह गयी।। 

पाकीजगी,शऊर और लफ्जों की जादूगरी।
ये क्या हुआ या खुदा ये किसकी नजर डह गयी।।
 
रवायतें और नए अंदाज में फन की बारीकी। 
जगजीत की गायकी इस जहां मिसाल बन रह गयी।।
 
मुक़र्रर ,इरशाद,बहुत खूब का जशने चराग़ा। 
"उस्ताद"-ए-ज़र्राफ़* की महफिल आज तो छह गयी।।
* (होनहार)
@नलिन #उस्ताद 

Monday, 3 October 2011

साईं तेरा जादू

साईं तेरा जादू अब सर चढ़ के बोलता है
जहाँ  देख़ू बस तू ही दिखाई देता है
मेरी क्या बिसात जो   कुछ भी कर सकूँ
मेरा हर काम तू ही तो किया करता है
ये नाम ये दौलत ये वाह-वाही मेरी
 क्या करूँ गुरूर ये तू ही तो दिया करता है
मंदिर,मस्जिद ,गुरुदारा और गिरजाघर 
रूप बदल कर बस तू ही तो बसा करता है
सुख, दुःख. उल्लास और बेचारगी 
जिन्दगी में हमारी तू ही  तो भरा करता है
कायनात में छायी है हर तरफ खुशबू तेरी
 महशूस हो अगर तो दीवाना बना देता है   

नलिन नाल

नलिन नाल जुडी है ब्रम्ह से
या कहूँ तो,ब्रह्म की नाल से
जुडा प्रस्फुटित है "नलिन"
तो भला सोचो जरा
नलिन क्यूँ हो मलिन
वह तो सदा निर्मल
 विहसता ही रहेगा 
हर घडी,हर पल
जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में
उसकी सहज मोहक,सरल चितवन
भर देगी हर किसी के अंतर्मन में
एक अद्भुत शांति
करुना, प्रेम, सहृदयता
जो अनिवार्य है
जीवन के सतत
प्रवाहमान रहने के लिए
सत्यम,शिवम्, सुन्दरम की
जागृत अनुभूति के लिये

मोहक चितवन का असर



तुम्हें देखता  हूँ जब कभी भी

  मृदुल  मुस्कान खिल जाती है  तभी

अधरों पर मेरे बस यूं ही

फिर चाहे उदास हूँ या हो परेशानी

समझ में नहीं आता ये कैसी अदा तुम्हारी

एक क्षण में जो भुला दे दुनिया सारी

चलता है बस मोहक चितवन का असर तुम्हारी

मैं तब मैं नहीं रहता हो जाता हूँ संपत्ति तुम्हारी

तभी तो खिल उठती है पोर-पोर मेरी

जो जादू नहीं, बस तुमसे जुड़ने की बात सारी।

Friday, 30 September 2011

रूह के श्रृंगार की बात

मौसम तो बदलते  जायेंगे साल दर साल  यू ही 
दिलो मे बहार के अब तराने छेडिये
मंजिले दूर हैं , भटक रहे हैं लोग सभी
स्नेह ,प्यार,विश्वास से फासलो को पाटीए
रंग व्यकतित्व के हैं सभी अलग बेसकिमती
इन्द्रधनुष बना इन्हे साथ -साथ जोडीये
जोश जज्बा हो अगर तो बदलती है तकदीर भी
चुनोतियो  के जाल को तदबीर से खोलिये
जुल्फ के श्रृंगार की बात तो बहुत हो गयी
रूह के श्रृंगार की बात अब जरा कीजिए

Thursday, 29 September 2011

जगत जननी माँ भवानी

जगत जननी माँ भवानी 
खड्ग त्रिशूल कर धारणी
अप्रतिम शौर्य सिंह  वाहनी 
भक्त कृपा वर दायनी
भू जन त्रसित,तम ग्रसित 
माँ सुन ले अरदास हमारी 
जन-मन हो शुद्ध गति-मति 
शरणागत हो जाएँ तेरी 
विश्व बने ,खुशहाल हमारा 
छाए सभी दिशा समृद्धि 
घर -घर गूँजे,मंगल धव्नि
जले अखंड नव ज्योति   

Saturday, 3 September 2011

मौन

मौन 
हर मौन की 
एक  भाषा होती  है 
और हर भाषा
अपने आप में
एक कायनात होती है
मौन सुनने के लिये
उसको बेहतर समझने के लिये
मौन चाहिए होता है
जो हमारे भीतर ही कहीं 
चुपचाप पड़ा होता है
मुशकिल कुछ  भी नहीं इसमे
बस जरा कसरत होती है
दिल दिमाग की खुर्दबीन से
धूल-धक्कड़ हटा कर
तटस्थ भूमिका निभानी होती है
चुपचाप फिर दबे पांव
गहरे उतर,दिल की सुरंग में
विचारों की आंधी शांत कर
चित्त के अनूठे प्रकाश के सामने
रखना होता है मौन की इबारत को
मौन अब छुपा नहीं रहता
उसका लिखा हर अबूझ भाषा का अर्थ
खुलकर   हमारे सामने होता है
पर्त दर पर्त, साफ़ -चमकदार 
रोजमर्रा की आम भाषा सा सरल होता है.
@नलिन #उस्ताद

Thursday, 1 September 2011

अनन्त आकाश


नीला अनन्त आकाश
जब होता है शांत
बिखेरता है मृदुल छांव
तो चलना कितना आसान
कर देता है मेरे लिए।
मेरे लिए यानी सारी
कायनात के लिए
लेकिन वही आकाश
जब प्रचंड सूर्य की
रश्मियों से होता है क्लांत
तो जन-जीवन
मुरझाने लगता है
झुलसने लगता है
सबका तन मन
ठिठक जाते है सभी
जन-पद।
...पर मुझे तो चलना होगा
निरंतर यूं ही अविराम
दरअसल जो छांह बटोरी है
आकाश से मैंने अपने लिए
उससे उपकृत तो होना है
आकाश को भी तो
शीतल छाँव चाहिये 

मुझे उसके लिये 
कड़ी धूप में चलना है।