Saturday, 3 September 2011

मौन

मौन 
हर मौन की 
एक  भाषा होती  है 
और हर भाषा
अपने आप में
एक कायनात होती है
मौन सुनने के लिये
उसको बेहतर समझने के लिये
मौन चाहिए होता है
जो हमारे भीतर ही कहीं 
चुपचाप पड़ा होता है
मुशकिल कुछ  भी नहीं इसमे
बस जरा कसरत होती है
दिल दिमाग की खुर्दबीन से
धूल-धक्कड़ हटा कर
तटस्थ भूमिका निभानी होती है
चुपचाप फिर दबे पांव
गहरे उतर,दिल की सुरंग में
विचारों की आंधी शांत कर
चित्त के अनूठे प्रकाश के सामने
रखना होता है मौन की इबारत को
मौन अब छुपा नहीं रहता
उसका लिखा हर अबूझ भाषा का अर्थ
खुलकर   हमारे सामने होता है
पर्त दर पर्त, साफ़ -चमकदार 
रोजमर्रा की आम भाषा सा सरल होता है.
@नलिन #उस्ताद

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