Thursday, 1 September 2011

अनन्त आकाश


नीला अनन्त आकाश
जब होता है शांत
बिखेरता है मृदुल छांव
तो चलना कितना आसान
कर देता है मेरे लिए।
मेरे लिए यानी सारी
कायनात के लिए
लेकिन वही आकाश
जब प्रचंड सूर्य की
रश्मियों से होता है क्लांत
तो जन-जीवन
मुरझाने लगता है
झुलसने लगता है
सबका तन मन
ठिठक जाते है सभी
जन-पद।
...पर मुझे तो चलना होगा
निरंतर यूं ही अविराम
दरअसल जो छांह बटोरी है
आकाश से मैंने अपने लिए
उससे उपकृत तो होना है
आकाश को भी तो
शीतल छाँव चाहिये 

मुझे उसके लिये 
कड़ी धूप में चलना है। 

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