Tuesday 30 July 2024

६६०: ग़ज़ल: साहिल को बाहों में भरने बड़ी दूर निकल लहर आती है

साहिल को बाहों में भरने बड़ी दूर निकल लहर आती है। 
जाने क्यों मगर हर बार ही क्या सोच घर लौट आती है।।

बंदिशों को तोड़ना और चलना नए रास्ते पर आसां नहीं।
हो हौसला अगर तुझमें तो मुश्किलें नहीं कतई डराती है।।

समन्दर हरा,आसमां नीला,काले बादल,सफेद लहरों के नज़ारे।
कुदरत भी न जाने कितने खूबसूरत अहसास हमें दिलाती है।। 

हर कोई मुन्तजिर है तेरे मयखाने में खुद को भुलाने का।
किस्मत मगर कहां हरेक पर मेहरबानी इतना दिखाती है।।

"उस्ताद" हर गली,हर शहर का मिज़ाज है अलहदा।
ये बात आसानी से मगर कहां दुनिया समझ पाती है।।

नलिन "उस्ताद"

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