नज़ाकत नफासत का दौर यार अब कहां रहने वाला।
हर कोई तो झूम रहा यहां अपनी ही धुन में मतवाला।।
दूसरे की बात पे कहां किसी को भी है थोड़ा इत्तेफाक।
ज़हीन-शहीन हर कोई है जब खुद को समझने वाला।।
इश्क,मुहब्बत,प्यार के किस्से अब तो सब लगते हैं झूठे।
इस मतलबी दुनिया में कौन भला किसी पे मिटने वाला।।
आते-जाते मुसाफ़िर मिल तो सकते हैं किसी एक मोड़ में।
मगर ये तो तय है हर कोई कभी न कभी बिछड़ुने वाला।।
तेरे दर पे आकर कोई खाली हाथ यूं तो लौट सकता नहीं।
हां जिसे तुझ पे शक है उन्हें नहीं कुछ हासिल होने वाला।।
नलिन "उस्ताद"
No comments:
Post a Comment