वो खट्टी-मीठी यादें,बचपन की बरसात में।
याद आने लग रहीं,पचपन* की बरसात में।।
*यूं उम्र अभी बहुत छोटी है
खूब तैरायीं थीं जो,कागज की कश्तियां हमने।
लगती हैं वो बातें अब,अड़चन की बरसात में।।
अरदास करी बादल से जो स्कूल न जाने की।
मगर रहीं वो सभी अधूरी,मन की बरसात में।।
टूटे हैं ख्वाब नशीले,अरमानों के कितने ही अपने।
उस दौर से भी हम हैं गुज़रे,जीवन की बरसात में।।
दिल नाचता है मोर जैसा आज भी,"उस्ताद" का।
देखता है वो जैसे ही घटाएं,सावन की बरसात में।।
नलिन "उस्ताद"
No comments:
Post a Comment