हर मोड़ हमें मिले हैं साकी लबालब जाम पिलाने के लिए।
तेरे हाथों पी रक्खी थी लगेंगे जमाने उसे भुलाने के लिए।।
माना उम्र हो गई हमारी सफर भी रह गया है बहुत थोड़ा।
मगर अब इतना न गिरेंगे बस कुछ घड़ी महकने के लिए।।
ज्वालामुखी के मुहाने पे भी लोग बेधड़क रहते हैं अक्सर।
सहुलियत में हम यहां रोते हैं हर घड़ी सांसें भरने के लिए।।
ये लजीज,लज्जतदार पकवान,महक अपनी बिखेरते हुए।
बुला रहे हमको जायकों से,सुकूने अहसास देने के लिए।।
"उस्ताद" हर तरफ़ हरे-भरे दरख्त कुदरत की बढ़ाते सांसे।
सोचिए मगर क्या हम हैं संजिदा उसे जिन्दगी देने के लिए।।
नलिन "उस्ताद"
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