बीती बातों का लगाते ही क्यों हैं हिसाब सदा आप।।
हर उम्र का,हर घड़ी का होता है अलग अंदाज़े बयां।
घुल-मिल जाया कीजिए माहौल में,मिले जैसा आप।।
हसीन ख्वाब दिखाए थे हथेली में सरसों के उगाने जैसे।
दिखाने के काबिल कहां रहे अब अपना ही चेहरा आप।।
सुकून भी है जरूरी उठा-पटक की जिंदगी के साथ में।
नंगे पांव चल के देखिए सुबह दूब में कभी जरा आप।।
ये जिंदगी "उस्ताद" हमें रास आई नहीं कभी भी सच में।
मगर चलो गुजार के देख लिया जाए संग इकठ्ठा आप।।
नलिन "उस्ताद"
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