वो रकीब ही हो चाहे पर लगता है प्यारा।
शिद्दत से कम से कम लेता तो है बदला।।
भले,बुरे से किसी को फर्क पड़ता अब कहां।
हर कोई बस अपने मतलब से वास्ता रखता।।
अलग ही एक रवायत शुरू हो गई है यारब।
करे इश्क का दावा मगर साथ नहीं निभाता।।
उमस है बड़ी रिश्तों में दिखाई दे रही आजकल।
बरसने में जाने क्यों प्यार का बादल झिझकता।।
मेरा स्टेटस तो देखता है जरूर हर रोज वो।
मगर कहां "उस्ताद" कभी बातचीत करता।।
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