Wednesday 24 July 2024

६५२: ग़ज़ल : एक और नए शहर में तुझे ढूंढते

एक और नये शहर में तुझे ढूंढते आ गए हम घर से।
हम पा लेंगे तुझे जरूर बस इस बार इसी उम्मीद से।।

बादल का घुंघट हटा चांद बोला हंसते हुए चांदनी से।
जिंदगी का लुत्फ उठाने दीजिए अपनी दीवानगी से।।

बांवलापन है अजब मियां गोल्फ़ के मैदान में खेलना।
निशाना साधिये तो तसल्ली से पर दौड़ते-भागते हुए।।

उजाले हैं अन्धेरों में जो गहराई से झांकेंगे अगर आप।
दस्तूर है यही ज़िन्दगी को असल मायने जीने के लिए।।

फूल खिले हैं तो तितलियां भी आ ही जायेंगी खुद ब खुद।
मौसम जरा वसन्त का परवान तो"उस्ताद"चढ़ने दीजिए।।

नलिन "उस्ताद" 

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