Tuesday 2 July 2024

६४१: ग़ज़ल: निभाना आसान है बड़ा जानिए यूं दुनियादारी को

निभाना आसान है बड़ा जानिए यूं दुनियादारी को।
कांटों पर तो है चलना हर कदम लेकर खुद्दारी को।।

उनकी चौखट तक हम आ तो गए कलेजा थामे हुए।
सदा दें मगर उन्हें कहिए कैसे सर-ए-आम दोपहरी को।।

जिंदगी की राहें ना पहले कभी आसान थी ना अब हैं।
हर हाल जीकर मगर देखना तो होगा इस जिंदगी को।।

सीधे-साधे रास्ते पर चलते रहिए आप चुपचाप बस। 
ज्यादा हवा मत कभी दीजिए अपनी तलाबेली* को।।
*लालसा

एक फुहार में कितनी उम्मीद लिए गुल फिर खिल गए।
"उस्ताद" खुद पर भी तो आजमाएं जरा इस कसौटी को।।

नलिन "उस्ताद"

Monday 1 July 2024

६४०: ग़ज़ल: वो रकीब ही हो चाहे पर लगता है प्यारा

वो रकीब ही हो चाहे पर लगता है प्यारा।
शिद्दत से कम से कम लेता तो है बदला।।

भले,बुरे से किसी को फर्क पड़ता अब कहां। 
हर कोई बस अपने मतलब से वास्ता रखता।।

अलग ही एक रवायत शुरू हो गई है यारब।
करे इश्क का दावा मगर साथ नहीं निभाता।।

उमस है बड़ी रिश्तों में दिखाई दे रही आजकल।
बरसने में जाने क्यों प्यार का बादल झिझकता।।

मेरा स्टेटस तो देखता है जरूर हर रोज वो।
मगर कहां "उस्ताद" कभी बातचीत करता।। 

नलिन"उस्ताद"