यूँ खुद से झूठ बोलना कतई आसान तो नहीं है।
आजकल मगर इस कला में माहिर हर कोई है।।
वो बना तो है जरूर भोला-भाला,गंवार सा दिखने में।
जान लो मगर वही बदलता,हर घड़ी अपनी केंचुली है।।
हर एंगल से खिंचवा कर बांटता है,तस्वीरें जो खुद की।
कहता फिरे वही हमें,जड़ों से टेक्नोलॉजी काट रही है।।
दिल,दिमाग बेच रट्टू तोते सी,सुबह उठकर बांग देना।
बीमारी कोई नहीं चाल बस एक सोची समझी चली है।।
रोशनी पर लगाया इल्ज़ाम अंधेरगर्दी फैलाने का।
बड़ी अजब-गजब नज़ीर उस्ताद" बस आपकी है।।
नलिनतारकेश @उस्ताद
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