रो-रो कर दिन रात अब तो कट रहे मेरे।
ख्वाब देखने की सजा नैन भुगतते मेरे।।
लिखना चाहता था कुछ लिख गया कुछ और।
उम्र के इस पड़ाव में दौर हैं नए दिखते मेरे।।
कलम तोड़ दिया था एक अरसा पहले।
मवाद पर अभी जा रहे हैं रिसते मेरे।।
तू नहीं आएगा लाख गुजारिश के बाद भी।
पता था मगर ताकना रास्ते कहाँ छूटे मेरे।।
दर्द ओ गम सारा ग़ज़ल में अपना बहा देते हैं।
"उस्ताद" तो हर वक्त मुस्कुराते दिखते मेरे।।
नलिनतारकेश "उस्ताद "
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