भला रुख से उन्हें नकाब क्यों हटानी चाहिए।
देखने को तिलिस्म कूवत भी तो होनी चाहिए।।
हर बात में शह-मात की बिसात बिछा दांव चलना।
कुछ तो अपनी तहजीब-ए-सादगी बचानी चाहिए।।
रंग में अपने शौक से अलमस्त गुजारो जिंदगी।
खुदा के लिए शुक्रगुजारी मगर रखनी चाहिए।।
मसरूफियत में रहते हो चलो ये दौर ही ऐसा है।
कभी हाल-ए-तबीयत घर की भी पूछनी चाहिए।।
मयखाने में लड़खड़ाते हैं कदम हर किसी के "उस्ताद"।
बगैर बहके सर से पाँव नशातारी बनी रहे मुबारक मेरी।।
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