हर किताब मुर्दा हर इल्म गूंगा हो गया।
दिल में उतर कर गहरे जो ठहर न सका।।
बहुत कहे फ़साने हमने तेरे लिए यारब।
तूने मगर हर किसी को अनसुना किया।।
बहार आए तो सूखे दरख्त भी हैं खिल जाते।
इसी एक उम्मीद ने हर हाल हमें जिंदा रखा।।
कयामत की रात का इंतजार भला क्यों करे।
तेरे सजदे में हर चौखट जो झुक चलता रहा।।
"उस्ताद" तुम भी कसम से खालिस बेअक्ल निकले।
अपनी नादानी का डंका ऐसे है कौन बजाता भला।।
नलिनतारकेश @उस्ताद
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