भला कहिए,यहाँ कौन किसको चाहता है।
हर कोई तो बस,अपना मतलब साधता है।।
ये खासमखास है,वो है काफिर मेरे लिए।
इसी भरम में अक्सर,आदमी भटकता है।।
दिल-ए-अजीज से भी मिलो,तो एक फासले से।
क्या ठिकाना आजकल,कब कौन रंग बदलता है।।
उम्मीद पालनी हो अगर,तो बस परवरदिगार से।
यूँ वो तो बिना मांगे तेरी,हर मुराद पूरी करता है।।
वैसे कहो तुम्हें पता ही क्या,भले-बुरे का तुम्हारे लिए।
ये सलीका-ए-फन तो "उस्ताद",बस खुदा जानता है।।
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