आँखों में जो काजल उसकी लगा है।
उसी ने रात का सारा आंचल बुना है।।
दिन मदहोश और हैं रातें गुलाबी उसी की।
करीब जिसे उसके रहने का मौका मिला है।।
एक अजब नजाकत लिए हवाएँ खुशबू बिखेरें।
जिस भी डगर को आने का तेरे अंदेशा हुआ है।।
रोंआं-रोंआं रूह का बस फफक कर बरसे।
हुस्ने जमाल का तेरा जो भी जिक्र करता है।।
सच कहें कसम से अपना तो कुछ भी तजुर्बा नहीं।
हाँ उसका बस "उस्ताद" से कुछ जलवा सुना है।।
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