किसी से मिलने पर बहुत ही थक जाता हूँ मैं।
गम की गठरी दरअसल उसकी ले आता हूँ मैं।।
मुलाकातों से बचने की जो आदत है बस इसीलिए।
ये हल्का अपना ही बोझ भी कहाँ उठा पाता हूँ मैं।।
आ जाओ कभी यहाँ झाँको तो सही दिले रानाइयों में।
दर्द-ए-तकलीफ में कैसे खुलकर ठहाका लगाता हूँ मैं।।
इनायत खुद्दारी की उडेली जो खुदा ने भरकर मुझपर।
सो कहीं हाथ फैलाने से पहले खुद ही रोक लेता हूँ मैं।।
गालिब,मीर फन-ए-सुरूर चढ़ रहा "उस्ताद" तुझमें।
ग़ज़ल ओढ़ूं ,बिछाऊं हर घड़ी बस यही सोचता हूँ मैं।।
नलिनतारकेश @उस्ताद
No comments:
Post a Comment