तेरे नाम की माला मैं जपता जो रहा हूँ।
दिन-ब-दिन बावला और भी हो रहा हूँ।।
सूरज,चांद,बुध,गुरु,राहु-केतु नवग्रह सारे।
हवाले कर सब तुझे आराम से सो रहा हूँ।।
पुरानी करम जो भी किए हैं,उल्टे-सीधे अब तलक।
उखाड़ उन सब को,बीज तेरे दीदार को बो रहा हूँ।।
खिलेगा कभी तो शतदल नलिन,दिल की झील में।
उम्मीद अपनी लेकर बस यही,सुध-बुध खो रहा हूँ।।
रास्ते कतई आसान नहीं,सजदे को तेरी चौखट पर।
ताब "उस्ताद" इतनी है नहीं,तभी तो बस रो रहा हूँ।।
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