नवल किशोर श्याम का होगा,देखो अनुपम आज श्रृंगार।
भक्तिमति राधा स्वयं सज्ज हैं,करने कान्हा को तैयार।।
माणिक,मोती,पन्ना,पुखराज नहीं, मात्र सुगंधित पुष्पहार।
कन्ठ त्रिवलय को करें सुशोभित, वैजयंती व पुष्पसार*।।
*तुलसी की माला
बांकी छवि,पहन पीत परिधान,देखो आया दिव्य उभार।
कोटि-कोटि कामदेव लज्जित,शीश झुकाते तब बारंबार।।
नील-"नलिन" देह लगा के अंगराग,राधे रहीं मोहन निहार।
प्रेम प्रदर्शन अपना सकुचाते करके,देतीं फिर लीला विस्तार।।
हाथों की मेंहदी बिखेर रही,सर्वत्र ही अरूणाभ बहार।
अधरोष्ठ बाँसुरी,मृदुल ऊंगलियाँ गूंज रही रस-झंकार।।
मदिर-नैन सम्मोहित करके,तन-मन करते अचूक वार।
तीव्र कटाक्ष बचने को तब,राधा देती काजल की धार।।
श्रीचरणों में लगी महावर,बने भक्त-हृदय उपहार।
करुणामयी हैं राधारानी,करतीं पातकजन उद्धार।।
कृष्ण कहें अब राधे जी छोड़ो,काज शेष है पड़ा संसार।
मैं रसिया बदनाम बड़ा हूँ,फिर कर्ण भेदती भक्त पुकार।।
राधारानी कहें अवश्य तुम जाओ,सुनो मगर बस एक मनुहार।
बड़ी प्रीत मेरी गूंथी ये "नलिन"-माल, कर लो हरि इसे स्वीकार।।
@नलिनतारकेश