Thursday, 5 September 2024

६८९: ग़ज़ल: पिलाई थी जो उसने प्यार से खुमारी उसकी ही बाकी है

पिलाई थी जो उसने प्यार से खुमारी उसकी ही बाकी है।
घर पहुंच के भी याद वहीं की जेहन में आकर सताती है।।

हरियाली का गलीचा कुदरत ने बिछाया था हमारे लिए।
उमस भरे मौसम में यहां बस वही याद हमें जिलाती है।।

कसम से क्या खूबसूरत मंजर था वहां का क्या बयां करें।
जो लिखने लगे‌ हैं तो कलम रुकने का नाम नहीं लेती है।।

नीले आसमां में उड़ रही थी पतंगें हमारे-उसके नाम की।
वो डोर ही यार हमें वहीं बार-बार खींचकर ले जा रही है।।

रंजोगम तो बहुत हैं‌ इस रंगीन दुनिया‌ की असल हकीकत में।
"उस्ताद" ये इनायत है खुदा की जो हमें खुशहाल रखती है।।
नलिन "उस्ताद"

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