घोंसला लगाएं या बेहतर रहे जो एक दरख़्त लगाइए।।
कड़ी मेहनत से इनको कहां भला कभी गुरेज रहा है।
अपनी बुरी आदतें खुदा के वास्ते इन पर न थोपिए।।
भोर होने का ऐलान करते जो घर-घर जाकर पुरजोर हैं।
मसनदे-लुत्फ छोड़ आप भी गुलाबी आसमां निहारिए।।
रंजोगम दिखता है कहिए भला कब इनके कलरव में।
लाजवाब करतब आप इनके हर दिन मौज से देखिए।।
एक-एक दाना भी चुगते हैं सेहत का लिहाज़ रखकर।
जिंदगी जीने का शऊर "उस्ताद" अब इनसे सीखिए।।
नलिन तारकेश "उस्ताद"
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