Monday, 14 March 2022

गजल 422: लबों पर हँसी

रुलाई तो हमारे हिस्से भी बहुत आती है।
मगर कमबख्त लबों पर हँसी ही छाती है।।

झूठ को चढ़ा दीजिए चाहे हजारों मुलम्मे।
एक दिन सामने कलई खुल ही जाती है।।

आंखों के बाग खिले थे जो टेसू के फूल।
याद उनकी हमें अब तलक महकाती है।।

थोड़ा चुप रहना भी सीख लीजिए जनाब। 
कभी खामोशी भी बड़ा जलजला लाती है।।

फकीरी तबीयत का ये करिश्मा तो देखिए।
जरा भी नहीं ये दुनियावी चाहतें सताती हैं।।

मुश्किलों को अदा से बस झटक दिया कीजिए। 
जुल्फों की तरह ये भी बिखर खिलखिलाती हैं।।

हो चाहे कितना भी बिसातें बिछाने में "उस्ताद" आप।
चुपचाप नादा सी दिखती पैदलें भी शिकस्त दिलाती हैं।।

@नलिनतारकेश  

No comments:

Post a Comment