Thursday, 17 March 2022

चहुंओर फागुन में

लो सब जन रंग लो,तन-मन अब कि इस होली में।
उड़ रहा मदमस्त,अबीर-गुलाल चहुंओर फागुन में।।

कोई गली भी विचरो,पाओ खुद को तुम वृंदावन में।  
युगल-सरकार,श्याम-श्यामा,चहुंओर दिखें फागुन में।।

गोपी-ग्वाल गलबहियां डाले,सब झूमें एक मस्ती में।
ता-ता थैया नाचे मिलजुल देखो ,चहुंओर फागुन में।।

धूम मची है देखो कैसी,नंद के आंगन सी,घर-घर में।
खुद को पहचान सके फिर कौन,चहुंओर फागुन में।।

ढफ,मृदंग बोल पड़े,मधुर माखन से जब,कानन में।
बोलो कौन रहे,अछूता अबकी,चहुंओर फागुन में।।

सटे कपोल करें रसभरी बतियां,राधेश्याम ज्यू आपस में।
नलिन खिले केसरिया,हृदय में सबके,चहुंओर फागुन में।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 15 March 2022

गजल-423 नंगा सच

सबके सामने नंगा सच जो आ गया है।
ताश के पत्ते की मानिंद वो कांप रहा है।।

रिश्वतखोरों ने धूल में दबाईं थीं जो फाइलें सारी। 
बरफ पिघली तो नजारा अब सब साफ हुआ है।।

कहने को क्या है उसके पास कहो सफाई में।
हर जगह रंगा हाथ खूं से जब दिखने लगा है।।

गर्त में यूं ही नहीं धंसते जा रहे हो बेवजह तुम।
देर ही सही इंसाफ ने कच्चा चिट्ठा तो खोला है।। 

धर्म,जाति,मजहब से कब तक बरगलाते रहोगे यारब।
फलक पर "उस्ताद" अब आफताबे रंग चढ़ा जुदा है।।

@नलिनतारकेश 

Monday, 14 March 2022

गजल 422: लबों पर हँसी

रुलाई तो हमारे हिस्से भी बहुत आती है।
मगर कमबख्त लबों पर हँसी ही छाती है।।

झूठ को चढ़ा दीजिए चाहे हजारों मुलम्मे।
एक दिन सामने कलई खुल ही जाती है।।

आंखों के बाग खिले थे जो टेसू के फूल।
याद उनकी हमें अब तलक महकाती है।।

थोड़ा चुप रहना भी सीख लीजिए जनाब। 
कभी खामोशी भी बड़ा जलजला लाती है।।

फकीरी तबीयत का ये करिश्मा तो देखिए।
जरा भी नहीं ये दुनियावी चाहतें सताती हैं।।

मुश्किलों को अदा से बस झटक दिया कीजिए। 
जुल्फों की तरह ये भी बिखर खिलखिलाती हैं।।

हो चाहे कितना भी बिसातें बिछाने में "उस्ताद" आप।
चुपचाप नादा सी दिखती पैदलें भी शिकस्त दिलाती हैं।।

@नलिनतारकेश  

Wednesday, 9 March 2022

होली

बनाओ ना बतिया,अब तो झूठी श्याम तुम हमसे।
सच-सच बोलो,कौन संग खेलन गए होली चुपके।।

रंग अबीर,गुलाल गलियन जब,मोड़-मोड़ पर बरसे।
तेरे तनिक दीदार को हम तो,दिन भर रहे तरसते।।

सदा रहा है फितरत में तेरी,ना आना वादा करके। 
जाने-बूझे फिर भी क्यों हम,आ जाते झांसे में तेरे।।

भई उमंग शिथिल तन-मन की,हम तो रहे बस प्यासे।
कब सुधि लोगे नटवर-नागर,जो सुधरें करम हमारे।।

ऐसी प्रीत निभाओगे तुम तो,फिर हमको कौन उबारे। 
खिले हुए थे जो"नलिन"सरोवर उर में वो हैं मुरझाते।।

@नलिन तारकेश

Monday, 7 March 2022

गजल: तुम्हारा"उस्ताद"

आओगे एक बार फिर से तुम्हीं ये तो सबको यकीं है।
देर-सबेर अब तो बन्द आँख बहुतों की खुल गयी है।।

पत्थर भी रंगीन हो गए हैं सारे ख़ैर-म़कदम की खातिर ।
जलवाए किरदार की देख नई तारीख यूँ गढ़ी जा रही है।।

केसरिया फाग की मस्ती को देखके हरेक दहलीज पर।
कसम से इस्तकबाल को बहार बड़ी बेकरार दिखती है।।

अरमानों को पंख तो तुमने ही लगाए हैं हमारे दिलों में।
उड़ान भरने का जुनून तभी तो सिरों पे सबके हावी है।।

जादू तो चलना बस शुरू ही हुआ है तुम्हारा"उस्ताद"।
ये कायनात यूँ ही नहीं सारी धड़कती दिखने लगी है।।

@नलिनतारकेश