Saturday, 3 April 2021

कृष्ण कृष्ण

अनुपम मनोहर जो देख ली।
रूपराशि अपने युगल सरकार की। 
होश में रही कहाँ ए सखी। 
जो वर्णन करूं मैं मन्दमति।।

लावण्य ऐसा गजब का दिखा।
जैसे मेघ मध्य बिजली है कौंधती। 
श्रवणरन्ध्र बस अब तलक।
नूपुर ध्वनि छन-छन है बोलती।।

न हाथ जुड़ सके प्रणाम को।
न शीश चरणों में नत हुआ। 
बांकी छवि "नलिन" नैन की।
उर आ बसी ये क्या कम हुआ।।

ये स्वप्न था या हकीकत।
कौन कैसे पड़ताल करे।
हां धड़कन जो चल रही तेज-तेज।
शायद वही कुछ बखान करे।।

नलिन @तारकेश

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