Monday, 12 April 2021

नववर्ष राक्षस की शुभकामना 2078 विक्रम संवत

[12/04, 5:18 pm] NALIN PANDE TARKESH 🚩: New year-Samvat 2078 starting from Tomorrow 13th April, Tuesday. Wishing all of you ❤Very happy 😊New year RAKSHAS. NEW YEAR KING AND MINISTER IS MARS ,so keep Hanumanji in your mind and do prayer 🙏for his blessings regularly. If your Mars is not good in kundali please do donations of red items according to your capacity. Do recite Hanuman Chalisa, Sunderkand or ॐ हनुमते नमः as much you can do
[12/04, 6:14 pm] NALIN PANDE TARKESH 🚩: If your Moon Sign or Mars is Mesh or Vrischik you can donate online/0ffline for medicine, hospitals, army, police. 
If Vrish then foods 
Mithun-small kids,education 
Karka-Mothers/ladies, colleges 
Simh- Government, PM fund
Kanya- Widows, Publishers 
Tula-Girls,Restaurants, Fashion 
Vrishchik- Researchers
[12/04, 6:33 pm] NALIN PANDE TARKESH 🚩: Dhanu-In Temples/for religious activities 
Makar- Administration, Political Parties 
Kumbh- Any Humanitarian Cause 
MEEN- CHARITABLE INSTITUTES,GURU,ANIMALS,PETS OR OTHER  KIND ,OVERSEAS

Sunday, 11 April 2021

गजल-332

सजदे में सामने बैठ उसके रोता बहुत हूँ।
परमानंद भीतर मगर तब बोता बहुत हूँ।।
रोना बुरा कतई नहीं जब दामन हो उसका।
बदमिजाजी ऐसे ही अपनी खोता बहुत हूँ।।
सतह पर मिलती कहाँ हैं चीजें कीमती। 
लगाता मैं गहरा तभी तो गोता बहुत हूँ।।
बाँचता हूँ यूँ तो सबके नक्षत्र,ग्रह,तारे मगर।
मुस्तकबिल से अंजान खुद के होता बहुत हूँ।।
जब से किया "उस्ताद" को उसके हवाले।
बेफिक्र घोड़े बेचके तबसे सोता बहुत हूँ।।

नलिन @उस्ताद 

Sunday, 4 April 2021

331-गजल

यहाँ मर के बमुश्किल अकेले कोई जाता है।
निकलता वो तो लेकर चाहतों का पिटारा है।।
आता है तभी तो यहाँ जमीं पर वो बार-बार।
सिलसिला ये जतन लाख ही छूट पाता है।।
हैं यहाँ जो भी बिछुड़ गए संगे-साथी। 
यादों का कारवां उनके साथ गाता है।। 
मिलते-बिछुड़ते हैं हम धूप-छांव जैसे।
जुदा यहाँ तो सबका ही बहीखाता है।।
देह मरती है,रूह तो मरती नहीं कभी भी।
नायाब एक बस यही तो अपना नाता है।।
चहकते रहो सफर में मिले-बिछुड़े चाहे कोई भी। 
"उस्ताद" जिंदगी का बस यही फसाना है।।

नलिन @उस्ताद 

Saturday, 3 April 2021

कृष्ण कृष्ण

अनुपम मनोहर जो देख ली।
रूपराशि अपने युगल सरकार की। 
होश में रही कहाँ ए सखी। 
जो वर्णन करूं मैं मन्दमति।।

लावण्य ऐसा गजब का दिखा।
जैसे मेघ मध्य बिजली है कौंधती। 
श्रवणरन्ध्र बस अब तलक।
नूपुर ध्वनि छन-छन है बोलती।।

न हाथ जुड़ सके प्रणाम को।
न शीश चरणों में नत हुआ। 
बांकी छवि "नलिन" नैन की।
उर आ बसी ये क्या कम हुआ।।

ये स्वप्न था या हकीकत।
कौन कैसे पड़ताल करे।
हां धड़कन जो चल रही तेज-तेज।
शायद वही कुछ बखान करे।।

नलिन @तारकेश

Friday, 2 April 2021

विक्रम बेताल

विक्रम - बेताल"- मन के जीते जीत, मन के हारे हार 
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भोग-विलास को आतुर हर क्षण खूंटा तोड़ प्रथम आता है मन।
राम नाम मगर बस एक बार उचारने में ही लकवा जाता है मन।।
सब यहीं धरा रह जाएगा,डुगडुगी पीट मुनादी तो करता है मन। 
बहुत करीने से मगर इसी न्योछावरी को बटोरता रहता है मन।।
भोगते-भोगते यूँ तो एक बार हांफने -कांपने भी लगता है मन।
प्रलोभन दे पर असंख्य मृगतृष्णा में बार-बार भटकाता है मन।। 
मन अगोचर  दिखता नहीं मगर अनंत भरे कामना हमारा है मन। 
दबाओ लाख चाहे मुट्ठी मगर रेत सा अंततः फिसल जाता है मन।।
अब भला कहो ये अकूत मन भर का क्या कभी न जीता जा सकता है मन।
बहला-फुसला तो कभी बार-बार उदासीनता से गिरफ्त में आ सकता है मन।।
यूँ कथनी करनी रहे मेल न तो बेताल सा छटक हाथ से जाता है मन। 
विक्रम-पराक्रम दिखाएं तो संकल्प बल से अंततः पिघल जाता है मन।।

नलिन @तारकेश