Saturday, 27 February 2021

गजल- 321 शिवोहम

आईना जो देखा तो उससे मुलाकात हो गई।
बिना लब हिलाए लो हजार बात हो गई।।
गर्दिशों में बीत रहे थे दिन हमारे एक उम्र से।
मिले उससे तो हर रात पूनम की रात हो गई।
दुनियावी समंदर में आती हैं मौजें डुबोने हमें भी। 
निकल आते हैं हर बार दांव दे ये करामात हो गई।।
देख नादानियां हमारी खुदाई भी हैरां,परेशां थी।
खुशियां तभी शायद बा मेहरबानी खैरात हो गईं।।
चटक धूप बंजर जमीन दर-दर भटके हम उसके लिए। 
मिलेंगे वो बस अगले कदम इसी उम्मीद बारात हो गई।। फाकामस्ती बसती है अब एक अजब ही कैफ़ियत लिए।
हर घड़ी "उस्ताद" की यूं ही नहीं नूरानी सौगात हो गई।।

नलिन "उस्ताद"

Wednesday, 24 February 2021

गजल- 320 रुबाईयां,शेर ओ नज्म सभी

रुबाईयाॅ,शेर ओ नज्म सभी साथ मेरे ही दफन कर देना।
हैं जो तोहफे महबूब की ये मुंह दिखाई संलग्न कर देना।।
वो तो आया नहीं कभी,रूठा रहा ता उम्र मुझसे।
कबूल करे मुझे यार मेरा,तुम ये निवेदन कर देना।। वादाखिलाफी पर उसकी नाराज हूं नहीं जरा भी। 
सुपुर्द ए खाक सजा मुझे सिंगार दुल्हन कर देना।।
लगी है लौ अब तो बस उसी छैल छबीले से मेरी।
श्मशान को मदहोश अरदास से वृंदावन कर देना।। 
न माने फिर भी अगर सांवरा तो,बस ये काम करना। 
नाम जाकर मेरे "उस्ताद" के,यार सम्मन कर देना।।

नलिन "उस्ताद"

Tuesday, 23 February 2021

गजल - 319 अश्क दिखा कर

अश्क दिखा कर छलकाना औ पोछना नजाकत से।
जमाने का दस्तूर है नया बिकता जो बड़ी मेहनत से।।
हर रोज तो देखते हो दानिशमंद तमाशा अपनी नादानी का।
लेते रहते हो बन कर बड़े मासूम फिर भी पंगा कुदरत से।।
दौड़ते थक गए हो अगर अपनी मंजिल को पाने में तुम।
ठहरो सब्र करो मिल जायेगी बस वो भी थोड़ी इबादत से।।
लगाना इल्ज़ाम तो झूठे फितरत में है दुनिया के।
बेखौफ बढ़ते रहना,न डरना कभी भी तोहमत से।।
हो अगर जिंदगी में अमन चैन की असल चाहत।
प्यार ही को बस तरजीह देना यार तुम दौलत से।।
समझ न पाओगे तुम कभी भी रस्मो-रिवाज इस दुनिया के।
 "उस्ताद" सफेद बालों की कसम उबरो अब तो जहालत से।।

नलिन "उस्ताद "

Monday, 22 February 2021

Bhom marriage poem 2

नवयुगल जोड़ी को ढेर आशीष के साथ 
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मदहोशी का हर तरफ अजब,बना फसाना है आज। 
दीवाना पी के नजरों से इसे,हुआ दीवाना है आज।।
जाने कितनी मुद्दतों बाद,दिल की अरदास है फली-फूली। हर तरफ बहकती बाहर का मौसम बना सुहाना है आज।। सूरज,चांद,सितारे सभी हैं हैरान-परेशान से आसमां में। 
भला ये कौन बुना जिसने नायाब ताना-बाना है आज।।
"भंवरा" बंजर जमीन,गुलों की तमन्ना लिए भटका था बहुत। 
खुदा ए नेमत देखिए महकता करीब ही खजाना है आज। मिला महबूब दिल को तो जन्नत का दीदार हो गया।
कहें और क्या जब "उस्ताद" ही आशिकाना है आज।।

नलिन "उस्ताद"

Bhom marriage

मोहे आई न जग से लाज
की इतना जोर से नाची आज। 
कि घुंघरू टूट गए।
मैं बसी थी जिसके सपनों में। 
है उसका भी घर लखनऊ में।
यूं ढूँढा मेट्रोमोनियल साइट कौन-कौन नहीं।
पर मिला मुझे वो घर के बगल में पास यहीं।
कि मेरा सेक्टर है 19 और उसका सेक्टर है 21।
तो सैटिंग हो ही गई। 
जब जग में फैली थी महामारी। 
हम करते थे जग के रत्याली। 
वो था लॉकडाउन बेंगलुरु में। 
और  मैं करती वर्क फ्रॉम होम लखनऊ में।
पर बड़े मजे की रही ये बात।
प्रॉपर सिग्नल आते रहे हर बार।
की चैटिंग हो ही गई।
अब तो हर स्वप्न हकीकत है।
जब वो बैठा मेरे बगल में है।
मेरे हाथों में उसकी डोरी है।
अब तो ये मेरी कठपुतली है।
ये चाहे बने सीईओ कहीं।
पर मानेगा हर बात अब मेरी।
कि ये डील हो ही गई।

नलिन "उस्ताद "

Thursday, 11 February 2021

गजल 317 -यूँ ही खामखां में


हंसने को तो हंसता ही रहता हूं अक्सर यूँ ही खामखां में।
मन होता है यार रोने का भी कभी मगर यूं ही खामखां में।
सांसे चल रही हैं,उम्मीदों का भी पल्लू कहां छूटा है।
लगता है मुसाफिर भटक गया पर यूं ही खामखां में।।
वो आएगा नहीं मिलने मुझसे ये वादा करके गया है।
जिद पर अड़ी है पर दिल की लहर यूं ही खामखां में।। उसे मेरी जरूरत नहीं,मुझे भी परवाह कहाँ उसकी।
रहते हैं हर घड़ी अब तो साथ मगर यूं ही खामखां मेें।। रूबरू हूं अगर खुद से तो बस एक आईने की बदौलत।
देखता हूं खुद को तो टूटता है अक्सर यूँ ही खामखां में।।
यूँ  तो करता है "उस्ताद" हर काम तू ही जमाने भर के। मुगालते में जाने क्यों फिर हर सफर यूं ही  खामखां में।।
नलिन "उस्ताद"

Wednesday, 10 February 2021

गजल - 318 हर उड़ती पतंग

हर उड़ती पतंग चिपटा लेता है खुद में दरख्त मेरा।
जाने कब तलक बहकायेगा मुझको ये वक्त मेरा।
हवाओं में तैरते बादलों संग बतियाने को।
तोड़ना चाहे है दिल हर एक गिरफ्त मेरा।।
देखा नहीं है पर फिर भी देखता हूं हर रोज उसे।
है लगता रंग तो लाएगा एक दिन ये खब्त मेरा।।
कहने को तो यूं कभी कुछ नहीं कहता है मुझसे।
यूं रखता है अपना वो नब्ज पर हाथ सख्त मेरा।।
कोसने दो जमाने भर को सारे जितना भी जी चाहे।
दरअसल हो गया है दिल बड़ा अब ढीठ,कमबख्त मेरा।।
है रहमो-करम "उस्ताद" का जब तलक भी।
सजता रहेगा यूं ही हर रोज दीवाने-तख्त मेरा।।

नलिन  "उस्ताद "

Tuesday, 9 February 2021

गजल 316- जहाँ भी बैठते हैं

जहां भी बैठते हैं वहीं सजदा करते हैं।
भला हम कहां दर-दर भटकते हैं।।
न घर के रहे न घाट के अब कुछ लोग।
यूं ही ता उम्र बस त्रिशंकु से लटकते हैं।।
सिलसिला चला जो ग़ज़ल का बस चल पड़ा।
बस ख्यालों की दरिया हम चंद लफ्ज़ फेंकते हैं।। 
कट के लिपटीं पतंगे कुछ तो जा दरख्तों में।
कुछ को लूटने की खातिर बच्चे मचलते हैं।।
तेरे आने की बात कही जो वसंत ने कानों में। 
अब एक पल भी कहाँ हम पलक झपकते हैं।।
इश्क में तेरे ।फ़ना होने की तमन्ना तो है हमें बहुत। 
देखिए मेहरबानी कब हम पर "उस्ताद" करते हैं।।

नलिन " उस्ताद "