Friday, 24 August 2018

गजल-240:जब से आदमी एक बाजार हो गया।

जब से आदमी एक बाजार हो गया।
हर तरफ तबसे व्याभिचार हो गया।।

तेरा-मेरा,उसका-इसका करा तो।
संबंधों का बंटाधार हो गया ।।

मंदिर-मस्जिद हर जगह जाता है अब वो।  लगता है शुरू काला कारोबार हो गया।।

ठसक उसकी देखते ही बनती है।
सुना है आजकल सरकार हो गया।।

जज्बात,इकराम सबके लिए एक था उसका।
कहा-सुना तभी तो"अटल"विचार हो गया।।

जुल्मों के खिलाफ जब से मुंह खोलने लगा।
सेक्यूलरों का "उस्ताद"शिकार हो गया।।

@नलिन #उस्ताद

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