Friday, 24 August 2018

गजल-217:प्यार मेरा जब से मजहब हो गया।

प्यार मेरा जब से मजहब हो गया।
रब मेरा हमसफर सुबू-शब* हो गया।।*सुबह-रात

दाद जो मिल गई गजलों पर उसकी।
इजहार-ए-जज्बात सवाब* हो गया।।*पुण्य

माटी का आंचल जो रौंदा था हमने खुद से।
सो कुदरत का कहर आज अजब हो गया।।

बुझी महफिल में वो आ गया बेनकाब तो ।
देखा जो उसका नूर तो गजब हो गया।।

संवारता रब पेशानी की लकीरें जिसकी। खुशनुमा मुस्तकबिल*उसका सबब* हो गया।।*भविष्य *कारण

हुआ जो"उस्ताद"पर"सकते का आलम"*। *समाधि की अवस्था
आज वो बैठे-बिठाए आप ही रब हो गया।।

@नलिन #उस्ताद

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