Wednesday, 29 August 2018

चाहता यही हूॅ

चाहता यही हूॅ मासूमियत बरकरार रहे तेरी। गिद्धों के शहर में भी खूब लंबी उम्र रहे तेरी।।

तूफां से करना इसरार* मंजिलों को चूमने से पहले।*निवेदन
तबियत मुसीबतों से खेलने की जवां यूं ही रही तेरी।।

मुफलिसी में रहे,तंगहाल या दर्द में कभी तू।
आदत देखने की हंसी सपने बनी रही तेरी।।

बाज़ार तो भटकाता है हर राहगीर को यहां से वहां।
अच्छा होगा सो खुली हो कर भी बंद नजरें रहें तेरी।।

दुआ है फले-फूले खूब दौलत की मुराद तेरी।
कुछ डालियाॅ मगर चौखट के बाहर भी रहें तेरी।।

सोच बदलती है तो बदले"उस्ताद"जमाने भर की।
सलामत यूं ही लेकिन फितरत फकीराना रहे तेरी।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 28 August 2018

देश जाता है तो जाए भाड़ में

देश जाता है तो जाए भाड़ में उसकी बला से। जहन्नुम* बने सबकी नजर में तो उसकी बला से।।*नरक

हो चाहे खुद काला अक्षर भैंस बराबर।
बोलना जरूरी फिर भी उसकी बला से ।।

एनसीसी जाने ना तो वो डोकलाम जाने। नासमझ कहें लोग उसको तो उसकी बला
से।।

जाता है जहां खिल जाते हैं"कमल"विरोधी पाले में।
"हाथ"मलते ही रह जाएं संगी-साथी उसकी बला से।।

अपना उल्लू साधना चाहते हैं उसे आगे रख
के।
बदनाम हो रहा वो पर परवाह कहाॅ उसकी बला से।।

लुटिया डुबो रहा है खूब वो खुद की अपने हाथ से।
देश,पारटी,विरासत भी डूबे तो उसकी बला से।।

जोकर सा समझते हैं अब तो हरेक लोग उसे। 
हैं सत्ता के सपने सो समझें उसकी बला से।।

शागिदॆ उसे बनाने से हर कोई बचता फिरे। "उस्ताद"भी कहता बचाओ मुझे उसकी बला से।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 27 August 2018

है होश हमको

है होश हमको उनकी नादानियों का।
करते पर चर्चा नहीं नादानियों का।।

आशिक को तो चाहिए बहाना तारीफ का। खुली या बंद जुल्फों की आशनाईयों का।।

करोगे अगर कत्ल-ओ-गारत सरेआम चौराहों पर।
रब भी देगा नसीहत भेज अनीकिनी(फौज) सुनामियों का।।

बात-बेबात करता बेवजह कमर के नीचे पेशदस्ती(आक्रमण)।
जम्हूरियत(प्रजातंत्र)में करें क्या बदसलूकी भरी मुखालिफों(शत्रुता)का।।

कुदरत के पास बैठ कभी थोड़ा सा इत्मिनान निकालकर।
लुत्फ तो जरा उठाइए हुजूर बिखरी हुई रानाइयों(सुंदरता)का।।

हर कोई गुमशुदा है जब अपने ही में सिमट कर।
"उस्ताद" करे जिक्र किससे अपनी तन्हाईयों का।।

@नलिन #उस्ताद

एक अलग सी ग़ज़ल (हास्य-व्यंग भरी)-82

एक अलग सी ग़ज़ल (हास्य-व्यंग भरी)
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पिछले जन्म से हजामत बना रहा हूं।
तभी तो आजकल गजलें जना रहा हूं।।

ऐसे तो भड़ास दिल की निकलती नहीं।
झिलाने* की खातिर शेर बना रहा हूं।।
*परेशां करने की खातिर

दाढ़ी में तिनका(चोर होना)फैशन हुआ है जब से।
किसी तरह पेट में दाढ़ी(धूतॆ प्राणी)सना रहा हूं।।

बात-बेबात अक्सर रूठ जाता है दिल मेरा।
बस दे किसी तरह झुनझुना इसको मना रहा हूं।।

दिल में ना लेना कभी बातों को मेरी।
दरअसल बेवकूफ तुमको बना रहा हूं।।

छंटा-छंटाया ही बनता है "उस्ताद" आजकल। 
सो चेलों पर अपने घूंसे दनदना रहा हूं।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 24 August 2018

हाथ में लकीरें

हाथ में लकीरें अब दो रह गईं।
इश्क और नसीब बस दो रह गईं।।

भरी झोली उसने हम सबकी।
मगर कुछ मुरादें तो रह गईं।

दिल से दिल के दरमियान दूरियां।
सुलझाते हुए भी कुछ तो रह गईं।।

कहने को तो कह दिया सब कुछ।
लो असल बात तो रह गई।

अब कहां सुधरेंगे बिगड़े नवाब।
जिंदगी ही जब घड़ी दो रह गई।।

अमलदारी*उसकी हर दौर खूब बढी।
पर उमर-ओ-अक्ल की भेंट तो रह गई।।
*सत्तासुख

प्यार तो"उस्ताद"यूॅ सब से मिलता रहा।
थोड़ी गिला-शिकवा अपनों से तो रह गई।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-217:प्यार मेरा जब से मजहब हो गया।

प्यार मेरा जब से मजहब हो गया।
रब मेरा हमसफर सुबू-शब* हो गया।।*सुबह-रात

दाद जो मिल गई गजलों पर उसकी।
इजहार-ए-जज्बात सवाब* हो गया।।*पुण्य

माटी का आंचल जो रौंदा था हमने खुद से।
सो कुदरत का कहर आज अजब हो गया।।

बुझी महफिल में वो आ गया बेनकाब तो ।
देखा जो उसका नूर तो गजब हो गया।।

संवारता रब पेशानी की लकीरें जिसकी। खुशनुमा मुस्तकबिल*उसका सबब* हो गया।।*भविष्य *कारण

हुआ जो"उस्ताद"पर"सकते का आलम"*। *समाधि की अवस्था
आज वो बैठे-बिठाए आप ही रब हो गया।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-240:जब से आदमी एक बाजार हो गया।

जब से आदमी एक बाजार हो गया।
हर तरफ तबसे व्याभिचार हो गया।।

तेरा-मेरा,उसका-इसका करा तो।
संबंधों का बंटाधार हो गया ।।

मंदिर-मस्जिद हर जगह जाता है अब वो।  लगता है शुरू काला कारोबार हो गया।।

ठसक उसकी देखते ही बनती है।
सुना है आजकल सरकार हो गया।।

जज्बात,इकराम सबके लिए एक था उसका।
कहा-सुना तभी तो"अटल"विचार हो गया।।

जुल्मों के खिलाफ जब से मुंह खोलने लगा।
सेक्यूलरों का "उस्ताद"शिकार हो गया।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 20 August 2018

हर जगह इतनी भीड़ हो गई।

हर जगह इतनी भीड़ हो गई।
सड़क ही लगता नींड़* हो गई।।*घौंसला

अब तो दिखता नहीं कोई आदमी।
सीधी जिसकी बाकी रीढ हो गई।।

दर्द जब कभी हद से बढ़ा।
दिलो-दिमाग मींड़* हो गई।।
*गूंधना/मसलना

बाहर कहां झांकने की फुरसत।
खुद में ही जबसे भीड़ हो गई।।

"उस्ताद" आशिकी उसकी
जिंदगी की एड़* हो गई।।
*kick/ घोड़े को भगाने के लिए  एड़ मारना।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 17 August 2018

अटलजी को श्रद्धासुमन

युगद्रष्टा,युगस्रष्टा है राष्ट्रपुरुष हमारे।
अर्पित तुम्हें सुमनश्रद्धा के करें विश्वजन सारे।

उन्नत देदीप्यमान भाल,उद्भट विद्वान बहुभाषी।
शब्द-व्याकरण की तुमने संजोयी अकूत संपदा राशि।।

युगदृष्टा,युगसृष्टा है राष्ट्रपुरुष हमारे।
अर्पित तुम्हें सुमनश्रद्धा के करें विश्वजन सारे।

श्रवण कर"गीता"तुम्हारी बनी अनेक अर्जुन गांडीवधारी।
भारत महान के तुम वर्तमान अप्रतिम "अटल बिहारी"।।

युगद्रष्टा,युगस्रष्टा है राष्ट्रपुरुष हमारे।
अर्पित तुम्हें सुमनश्रद्धा के करें विश्वजन सारे।

हिंदू तन-मन,हिंदू जीवन,रग-रग हिंदू तेरा परिचय।
विशाल उदारमना जीवन रहा सदा तेरा सर्वजन हिताय।।

युगद्रष्टा,युगस्रष्टा है राष्ट्रपुरुष हमारे।
अर्पित तुम्हें सुमनश्रद्धा के करें विश्वजन सारे।

काल के कपाल पर लिखने की विकट चुनौती थी तुझे स्वीकार्य।
पोखरण विस्फोट तभी तो किया "वाजपेयी-यज्ञ"हेतु शिरोधार्य।।

युगद्रष्टा,युगस्रष्टा है राष्ट्रपुरुष हमारे।
अर्पित तुम्हें सुमनश्रद्धा के करें विश्वजन सारे।

राजनीति का अजातशत्रु, शिखर-पुरुष,
कालजयी,निर्विकार।
ऋषि तुल्य जननायक "भारतरत्न" नमन है तुझको बारंबार।।

युगद्रष्टा,युगस्रष्टा है राष्ट्रपुरुष हमारे।
अर्पित तुम्हें सुमनश्रद्धा के करें विश्वजन सारे।

@नलिन #तारकेश

Friday, 3 August 2018

बदलने लगा है

उसका चेहरा भी अब बदलने लगा है।
रहनुमाई का नकाब उतरने लगा है।।

वो जो कहता था  बेखौफ हूं फुला के छाती।
अब दबाव में जरा से वो ही झुकने लगा है।।

गनीमत"सुषमा"की तो तेरी कलई खुल गई। अपने ही लोगों के हाथ धो पीछे लगा है।।

"अमित"अजमत* उसकी जुमलाबाजी कह रहे सब।*तेजस्विता
लगता है वोट खातिर वो भी बिकने लगा है।।

छल,कपट,खयानत* राजनीति में और क्या बचा अब।*बेईमानी
दलों का दलदल वतन को हमारे निगलने लगा है।।

सच कहूं तुझसे बहुत थी उम्मीद हम सभी को ही।
लगता है मगर तू अब समझौते करने लगा है।।

अब भी ना सुधरा अगर "उस्ताद" तो कहूंगा
यही।
तय मान लेना आधार तेरा अब दरकने लगा है।।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 2 August 2018

इश्क किया

आसां तो नहीं था पर मैंने इश्क किया।
जीना था भरपूर सो उससे इश्क किया।।

उसमें मैंने खुद को पाया।
जब जाना तो इश्क किया।।

वो साथ रहा है मेरे हरदम।
फिर तो होना था सो इश्क किया।।

हंसते-रोते उससे मैंने।
बस मन-बेमन से इश्क किया।।

जहां भी देखूं वही है दिखता।
सो सब से ही मैंने इश्क किया।।

यूं तो सच है "उस्ताद"यही।
उसने ही मुझसे इश्क किया।।

@नलिन #उस्ताद