वो मुझे चाहता है ये तो पक्का पता है।
जाने इजहार क्यों मुझसे नहीं करता है।।
जो पूछता हूँ उससे हिम्मत करके मैं कभी।
वो अनसुना कर बातों का सिला बदलता है।।
जरूर हुआ है कोई मुझसे ही बड़ा गुनाह।
यूँ उसे हर कोई बड़ा नरम दिल कहता है।।
बस ख्यालों में अपने डूबे रहना,मुझे बड़बड़ाने देना।
ये कहाँ कुछ अपनी तरफ से एक लफ्ज बोलता है।।
मेरा होकर भी मेरा भला अब तक जाने क्यों नहीं हुआ।
क्या उसे नहीं गुमान इस सबसे दिले "उस्ताद" टूटता है।।
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