जाने क्यों इतनी चिढ़े हुए,परेशान हैं ये लोग।
शायद अपनी ज़मीं दरकने से रूठ रहे लोग।।
लाख कोशिश कर तो रहे धूल चटाने की उसे।
मगर अजब हर बार खुद शिकस्त खाते लोग।।
वो निखरता जा रहा हर बार वार से हीरे के मानिंद।
दुनिया सलाम कर रही पर खफा हैं कुछ चुने लोग।।
कुछ खामियां निकाल वो लेंगे जरूर जो पंचायत पे आए। बुलंदियों का ग्राफ मगर सामने-सामने नकारेंगे कैसे लोग।।
धीरे ही सही रंग तो ला रही है मेहनत उसकी "उस्ताद"।
वरना तुम ही कहो बेवजह कहाँ किसी को हैं पूजते लोग।।
नलिनतारकेश@उस्ताद
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