खिले तो बहुत फूल,छोटे से इस आशियाँ में मेरे।
जब आओगे मगर तुम बहार तो हम तभी मानेंगे।।
ये शहर सच कहूँ कतई रास आ नहीं रहा अब मुझे।
सोचता हूँ जाकर फिर से बस जाऊं पहाड़ में अपने।।
माना बड़ी तेजी से गाँवों को निगलते ही जा रहे शहर।
अभी भी लेकिन कुदरत भरती यहाँ ताजा हवा फेफड़े।।
वो चाहता है जितना तुझे उतना और कौन चाहेगा।
रहता जो दिल में बेकार ढूंढ रहा उसे तू बुतखाने में।।
मोबाइल तो छूटेगा नहीं कसम से आपके हाथ से हुजूर।
चलिए फिर एक सेल्फी ही मेहमाननवाज़ी में ले लीजिये।।
कम से कम "उस्ताद" इतनी तो तहजीब बनाए रखिए।
बगैर मुंह बनाए कीजिए अपनों के संग में दो बात हंसते।।
नलिनतारकेश@उस्ताद
Bahut sunder Nana nd nati bonding
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