हवस हो गई है केवल देह,दौलत,शोहरत की।
आरामतलबी है छाई कौन सोचे मेहनत की।।
अकेला चना भाड़ भी फोड़ लेगा चलो माना हमने।
महफिल सजेगी सुरमई जो बही बयार संगत की।।
चल पड़ा है सबको मोहब्बत की राह दिखाने के लिए।
नफ़रत के शहर में दाद तो देनी ही पड़ेगी हिम्मत की।।
ख्वाब देखना है जरूरी मुस्तकबिल संवारने को।
हाथ रखना मगर नब्ज़ पर ज़मीनी हकीकत की।।
क्या-क्या कहें,क्या-क्या लिखें,उनके जलवे दीदार पर। "उस्ताद"बस लेते बलैया उनकी नजाकत,नफासत की।।
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