देखो तो यहाँ ना तुम हो ना हम हैं।
मगर फिर भी ना जाने क्यों गम हैं।।
ये कैसी बस्ती बसाई खुदा ने कहो तो।
ख्वाब,हकीकत सभी तो यहाँ भरम हैं।।
हर कोई तो घाव छूकर बस झंझोड़ता।
भला कहाँ लगाते यहाँ कोई मरहम हैं।।
किस पर करें यकीं इस सफर में हम।
बदलते सबके ही मिजाज़े मौसम हैं।।
धुआं-धुआं सी देख बिखरती जिंदगी।
गम भुलाने पीते "उस्ताद" चिलम हैं।।
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