तेरे मयखाने से बस एक घूंट की है मुझे दरकार कन्हैया।
रहम कर जरा मुझ पर बस यही है तुझसे गुहार कन्हैया।।
छके-छके से लोग देखता हूँ दर पे लड़खड़ाते हुए जब।
सोचता कितनी मस्ती होगी प्यालों में दिलदार कन्हैया।।
एक बार,बस एक बार दीदार हों,लड़ें निगाहें तेरी-मेरी।
हो जाएगी ये टूटी कश्ती भी भवसागर से पार कन्हैया।।
ज़र्रे-ज़र्रे पर तेरी बांसुरी ही तो गमक के साथ है महके। सुना दे कभी तो ख्वाब या हकीकत,हूँ बेकरार कन्हैया।।
राधा,मीरा,रसखान,सूर जाने कितनों को बनाया है अपना।
"उस्ताद"थामे कलेजा खड़ा,बांध दे गन्डा सरकार कन्हैया।
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