Friday 8 September 2023

578: ग़ज़ल: उस्ताद भीग जाते शहर में

हुई बरसात जो आज बेवजह तेरे शहर में।
सराबोर हो गया हूँ मैं यहाँ अपने शहर में।।

बादलों को भी भाता,आंख-मिचौली का खेल है।
हैरान हूँ जब दिखते कहीं,तब हैं बरसते शहर में।।

मोर,दादुर,पपीहा जो झूमें मिला के ताल सारे।
अब कहो कहाँ कोई हैं दिखते ये मेरे शहर में।।

हर बौछार की हरेक बूंद में कशिश है गजब की।
जो देखो भीग के अगर तो डूब जाओगे शहर में।।

एक कतरा भी बरसे जो कहीं किसी एक कोने।
"उस्ताद" एक हम ही हैं जो भीग जाते शहर में।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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