दिल के जज्बात न कहो तुम किसी से चलो हमने माना।
उठते सैलाब को साफ़गोई से खुद को तो सुनाओ यारा।।
परेशानी का सबब तुम्हारी हमें मालूम है सब जाना।
बेवजह देने तसल्ली भला फिर क्यों सुनाते हो गाना।।
मंझधार में जानबूझकर ले गए थे क्यों कश्ती अपनी।
साहिल पर कभी तुम्हें आया नहीं जब चप्पू चलाना।।
आँधियों को तो तलाश रहती है अक्सर ऐसे मौकों की। फकत कहने पर दूसरों के क्यों घर अपना जला डाला।।
यूँ तो इस शहर में हर कोई भीतर से बहुत उदास,तन्हा है।
बस इसी इम्तिहाँ से तुम्हें सीखना है उस्ताद उबर पाना।।
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