महकते हैं फूल तो उनके साथ कांटे भी होते हैं।
इश्क करते हैं जब तो क्यों नहीं हम ये सोचते हैं।।
चांद रुपहला,संगमरमरी दिख रहा हो कितना भी चाहे। हकीकत में धीरे-धीरे ही सही ओझल तो होगा जानते हैं।।
जो बदलोगे नहीं फितरत तो क्या सब ठहर जाएगा।
वक्त के कदम कहाँ किसी के भी रोकने से ठहरते हैं।।
दूर कहीं अंधेरी सुरंग से दिख रहा है टिमटिमाता दिया।
चलो काफी है सुकूं इतना आगे बढ़कर सफर करते हैं।।
ये जिंदगी की नाव को खेना आसान कहाँ है।
साहिल पे आकर भी "उस्ताद" जी डूब जाते हैं।।
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