Thursday, 30 May 2024

६१८: ग़ज़ल -सुर्खाब सा इतराना अच्छा नहीं

हर बात पर सवाल करना अच्छा नहीं।
जान के भी अंजान बनना अच्छा नहीं।।

नतीजे जब साफ दिखते हों उतार के भी ऐनक।
किसी पर ठीकरा हार का फोड़ना अच्छा नहीं।।

मेहनत मशक्कत में कहां मुकाबले करोगे उससे। 
भरी दुपहरी मुंगेरी से‌ सपना देखना अच्छा नहीं।।
 
माना सफर है अभी भी दूर नंगे पांव चलने का। 
थक-हारकर तकदीर को कोसना अच्छा नहीं।।

मुकाबले में हो तो ज़रा ज़मीर अपना बचाकर रखो।
"उस्ताद" हर बात सुर्ख़ाब सा इतराना अच्छा नहीं।।

नलिन "उस्ताद"

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