Friday, 31 May 2024

ग़ज़ल: ६१९ बेसाख्ता

आंखों में जरा आप पानी तो बूंद भर रख लीजिए।
 समझ के झील कोई तैरे भी तो कैसे जरा सोचिए।।

मैंने जो लगाया था घोंसला गौरैय्या पालने के लिए।
रहने को आईं वो मगर बड़ा ठोक बजाकर देखिए।।

बहुत सोचता हूं उसके लिए जान न्योछावर कर दूं।
मगर वो बनती ही नहीं मेरी जान क्या करूं कहिए।।

प्यार मेरा एक राज था तो भला उसे कैसे बयान करता।
निगाह पढ़ने का था बहुत उसे तजुर्बा तो क्या कीजिये।।

बेसाख्ता  खुद को ही दाद दे देता हूं अब तो मैं अक्सर।
"उस्ताद" जब और कोई न पूछे तो भला क्या कीजिए।।

नलिन "उस्ताद" 

Thursday, 30 May 2024

६१८: ग़ज़ल -सुर्खाब सा इतराना अच्छा नहीं

हर बात पर सवाल करना अच्छा नहीं।
जान के भी अंजान बनना अच्छा नहीं।।

नतीजे जब साफ दिखते हों उतार के भी ऐनक।
किसी पर ठीकरा हार का फोड़ना अच्छा नहीं।।

मेहनत मशक्कत में कहां मुकाबले करोगे उससे। 
भरी दुपहरी मुंगेरी से‌ सपना देखना अच्छा नहीं।।
 
माना सफर है अभी भी दूर नंगे पांव चलने का। 
थक-हारकर तकदीर को कोसना अच्छा नहीं।।

मुकाबले में हो तो ज़रा ज़मीर अपना बचाकर रखो।
"उस्ताद" हर बात सुर्ख़ाब सा इतराना अच्छा नहीं।।

नलिन "उस्ताद"

Wednesday, 29 May 2024

६१७: ग़ज़ल : ये आपकी इनायत के दर्शन हमें आपके हो गए

ये आपकी इनायत,के दर्शन हमें आपके हो गए।
वरना तो अपने दिन, यूं ही फाकों में थे कट रहे।।
सोचा कि चलो कुछ देर सुस्ता लें कुछ देर ठहर कर। 
मगर कहां नसीब में अपने अब दरख़्त थे बचे हुए।।
कसम से तुम जो भी हो कर रहे ये अच्छा नहीं है।
कलम छोड़ कुल्हाड़ी जो हाथ में थाम चलने लगे।।
मोबाइल चलाने में ही सारा वक्त खर्च कर दिया।
अब नसीब पर क्यों बेवजह इल्जाम लगे थोपने।।
हर शख्स यहां "उस्ताद" तेरा दिवाना बताता है खुद को।
ये अलग बात है कि परवाने सा जुनूं लिए कुछ ही दिखे।।
नलिन "उस्ताद"

Friday, 17 May 2024

६१६: ग़ज़ल: आप जलकर राख हो गई

दुखड़ा लेकर गई भी कहां सुनाने किस ख़तीब* से।*मौलवी 
आप ही जलकर हो गई वो राख जिसके करीब से।।

करवा रहा हूं प्यार का इज़हार नक़ीब* से।
*डुग्गी पीटने वाला 
सुना है कि वो बिफर गया है मेरे रक़ीब से।।

तल्ख मौसम के चलते स्याही कलम की जो सूखी थी। उम्मीद है पुरजोर बहने लगेगी फिर दिल के करीब से।।

ये दिल के घाव भरते नहीं कि फिर लगते हैं रिसने।
सो सोच रहा करवा ही लूं इलाज लगकर तबीब* से।।*डाक्टर 

हर एक से होती है गुस्ताखियां चाहते न चाहते भी। 
रूठ कर भला कोई कब तक बैठे अपने हबीब* से।।*प्रेमी

ये काली आंधियों के बादल छत पर गड़गड़ा रहे हैं।
हुज़ूर जाकर सुनिए कुछ शेर "उस्ताद" ए हबीब से।।