Tuesday, 26 October 2021

399- गजल: सिक्कों से न तौलिए

रोना रोकर वक्त की कमी का नजरअंदाज न कीजिए। रिश्तो की दूरियों को यूँ बेवजह आप झटक न तोड़िए।।

दौलत शोहरत कमा रहे तो ये बात बेमिसाल है।
सोने,चांदी की चमक से मगर यूँ अन्धे न होइए।।

दिल धड़कता है बस असल प्यार के अहसास से। दिलो-दिमाग में इसकी कमी जरा न होने दीजिए।। 

बदला है मिजाज़े वक्त मगर सँवारना तो हमें ही होगा। 
जरा-जरा सी हर बात पर हुजूर यूँ हौसला न छोड़िए।।

आँखों में सच्चे प्यार की कशिश अलग ही चमकती है। "उस्ताद"हर बात को महज सिक्कों से न  तौलिए।। 

नलिनतारकेश

Monday, 25 October 2021

398:गजल- खुदा ही ढाढस बंधाता है मुझे।

दर्दे सैलाब उफन जब-जब भी डुबोता है मुझे।
लिखके ग़ज़ल कलम तब-तब बचाता है मुझे।।

उजालों के बदलते रंग बहुत देख लिए जनाब।
अब तो बस ठहरा हुआ अंधेरा सुहाता है मुझे।।

हर कोई अपने आप में इस तरह गुम है। 
मिलाते हाथ भी लगता चिढ़ाता है मुझे।।

सुर-ताल,नफासत-सदाकत सब भूल जाइए।
तहज़ीब का यूं बेवजह रोना सताता है मुझे।।

"उस्ताद" यहाँ नहीं कोई किसी का सच मानिए।
हर हाल बस एक खुदा ही ढाढस बंधाता है मुझे।।

नलिनतारकेश।।

Saturday, 23 October 2021

397 : गजल --- वक्त का सिला

वो शहर में आकर भी न मुझसे मिला। 
वक्त का देखने को मिला ऐसा सिला।।

तन्हाई ओढता-बिछाता ही अब चल रहा।
आईने से मुँह मोड़ कहाँ जीना हो सका।।

रूह तो जाने कब की फना हो गई यारब।
देखना है जिस्म बिना इसके कब तक चला।।

वो करीब होकर भी मुझसे हैं दूर क्यों।
इस बात का ता-उम्र पता न लग सका।।

"उस्ताद" खोए हैं शेखचिल्ली से ख्वाब संजोए।
यूँ उसने तो बड़ी साफगोई से इनकार कर दिया।।

नलिनतारकेश