Monday, 26 December 2016

गजल-52 "उस्ताद" वो नेमत ही है, माना कीजिये



बढ़ती उम्र से न कभी परेशां हुआ कीजिये।
अपने दिल को बस बच्चा ही रखा कीजिये।।

आवाज में दर्द होता हो तो हुआ करे आपके।
फुरसत निकाल कुछ गुनगुनाया कीजिये।।

ये दुनिया तो मतलबी रही है सदा से यूँ ही।
भाव उसको न ज़्यादा कभी दिया कीजिये।।

रास्ते कठिन हैं डगर के हर कदम दर कदम
हर सांस बस खुद पर यकीं किया कीजिये।।

बदलते हैं घूरे के दिन भी कभी न कभी तो।
खुदा पर भी थोड़ा ऐतबार किया कीजिये।।

जो हुआ,हो रहा या जो होगा आगे कभी।
"उस्ताद" वो नेमत है,सुन लिया कीजिये।।  

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