Friday, 30 September 2011

रूह के श्रृंगार की बात

मौसम तो बदलते  जायेंगे साल दर साल  यू ही 
दिलो मे बहार के अब तराने छेडिये
मंजिले दूर हैं , भटक रहे हैं लोग सभी
स्नेह ,प्यार,विश्वास से फासलो को पाटीए
रंग व्यकतित्व के हैं सभी अलग बेसकिमती
इन्द्रधनुष बना इन्हे साथ -साथ जोडीये
जोश जज्बा हो अगर तो बदलती है तकदीर भी
चुनोतियो  के जाल को तदबीर से खोलिये
जुल्फ के श्रृंगार की बात तो बहुत हो गयी
रूह के श्रृंगार की बात अब जरा कीजिए

Thursday, 29 September 2011

जगत जननी माँ भवानी

जगत जननी माँ भवानी 
खड्ग त्रिशूल कर धारणी
अप्रतिम शौर्य सिंह  वाहनी 
भक्त कृपा वर दायनी
भू जन त्रसित,तम ग्रसित 
माँ सुन ले अरदास हमारी 
जन-मन हो शुद्ध गति-मति 
शरणागत हो जाएँ तेरी 
विश्व बने ,खुशहाल हमारा 
छाए सभी दिशा समृद्धि 
घर -घर गूँजे,मंगल धव्नि
जले अखंड नव ज्योति   

Saturday, 3 September 2011

मौन

मौन 
हर मौन की 
एक  भाषा होती  है 
और हर भाषा
अपने आप में
एक कायनात होती है
मौन सुनने के लिये
उसको बेहतर समझने के लिये
मौन चाहिए होता है
जो हमारे भीतर ही कहीं 
चुपचाप पड़ा होता है
मुशकिल कुछ  भी नहीं इसमे
बस जरा कसरत होती है
दिल दिमाग की खुर्दबीन से
धूल-धक्कड़ हटा कर
तटस्थ भूमिका निभानी होती है
चुपचाप फिर दबे पांव
गहरे उतर,दिल की सुरंग में
विचारों की आंधी शांत कर
चित्त के अनूठे प्रकाश के सामने
रखना होता है मौन की इबारत को
मौन अब छुपा नहीं रहता
उसका लिखा हर अबूझ भाषा का अर्थ
खुलकर   हमारे सामने होता है
पर्त दर पर्त, साफ़ -चमकदार 
रोजमर्रा की आम भाषा सा सरल होता है.
@नलिन #उस्ताद

Thursday, 1 September 2011

अनन्त आकाश


नीला अनन्त आकाश
जब होता है शांत
बिखेरता है मृदुल छांव
तो चलना कितना आसान
कर देता है मेरे लिए।
मेरे लिए यानी सारी
कायनात के लिए
लेकिन वही आकाश
जब प्रचंड सूर्य की
रश्मियों से होता है क्लांत
तो जन-जीवन
मुरझाने लगता है
झुलसने लगता है
सबका तन मन
ठिठक जाते है सभी
जन-पद।
...पर मुझे तो चलना होगा
निरंतर यूं ही अविराम
दरअसल जो छांह बटोरी है
आकाश से मैंने अपने लिए
उससे उपकृत तो होना है
आकाश को भी तो
शीतल छाँव चाहिये 

मुझे उसके लिये 
कड़ी धूप में चलना है।