Saturday 9 June 2018

गजल-211 किसे अच्छी नहीं लगती

पहली फुहार मानसून की किसे अच्छी नहीं लगती।
महबूब की बातें रसीली किसे अच्छी नहीं लगती।।

दिल में वीणा के तारों सी बजती हैं बूंदे जब प्यार की।
भला बेसुरी बोली भी उसकी किसे अच्छी नहीं लगती।।

आएंगे अच्छे दिन,मिट जाएगा मुफलिसी का  दौर ये।
बात हो चाहे झूठी सही,किसे अच्छी नहीं लगती।

समझ आती नहीं,मगर कहो तो दिल में हाथ रख कर।
बातें ये बच्चों की तोतली किसे अच्छी नहीं लगतीं।।

जी-तोड़ मेहनत से कमाई हो अगर थोड़ी भी दौलत।
ये लाख दरजे की अमीरी किसे अच्छी नहीं लगती।।

खुद में सिमट अपने खो दिए हों जब यार सब।
बिन कहे मदद मिलती किसे अच्छी नहीं लगती।

करम हो खुदा का है जैसा"उस्ताद"पर। जिंदगी भला ऐसी किसे अच्छी नहीं लगती।।

@नलिन #उस्ताद

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