मैं तो चुपचाप बस उसका करम देख रहा था। कतरा-कतरा वो मुझे पाक साफ कर रहा था।।
यूं लगना तो था वक्त बहुत,ऐब जो था।
श्रद्धा-सबूरी मगर वो सब दे रहा था।।
माॅ कराती है गोशल(स्नान)अपने बच्चे को जैसे।
प्यार से,तो कभी थप्पड़ से वो रगड़ रहा था।।
मुझे भी था इत्मीनान,बस कभी थोड़ी सी चीख-पुकार।
देख के बढता नूर,वरना मैं तो खुश हो रहा था।।
किरदार उसका सा दरअसल है कहां जमाने में कोई।
माशूक "उस्ताद" का फिर वो तो एक जमाने से रहा था।।
@नलिन #उस्ताद
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